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उप प्रधानमंत्री का कार्यकाल: 24 मार्च 1977 – 28 जुलाई 1979
रक्षा मंत्री का कार्यकाल: 1977 – 1978 | 1970 – 1974
जन्म: 5 अप्रैल 1908
जन्मस्थान: चांदवा, भोजपुर जिला, बिहार, भारत
मृत्यु: 6 जुलाई 1986 (उम्र 78)
राजनीतिक दल: भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
जीवन संगी: इन्द्रानी जगजीवन राम धर्म: हिन्दू धर्म

बाबू जगजीवन राम के जीवन में कई महत्वपूर्ण पहलू हैं। उनमें से एक महत्वपूर्ण योगदान भारतीय संसदीय लोकतंत्र के विकास में रहा है। उन्हें केवल 28 साल की उम्र में, 1936 में, बिहार विधान परिषद का सदस्य बनाया गया था। जब गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट 1935 के तहत 1937 में चुनाव हुए, तो बाबूजी को डिप्रेस्ड क्लास लीग के उम्मीदवार के रूप में निर्विरोध एमएलए चुना गया। उनकी कोशिश थी कि जगजीवन राम को लालच देकर अपने साथ मिला लिया जाए, लेकिन उन्होंने अंग्रेज़ों का साथ नहीं दिया। इसके बाद ही बिहार में कांग्रेस की सरकार बनी, जिसमें वह मंत्री बने। साल भर के अंदर ही अंग्रेज़ों के गैरजिम्मेदार रुख के कारण महात्मा गांधी की सलाह पर कांग्रेस सरकारों ने इस्तीफा दे दिया। बाबूजी इस काम में सबसे आगे थे। पद का लालच उन्हें छू तक नहीं गया। बाद में वह महात्मा गांधी के सविनय अवज्ञा आन्दोलन में जेल गए। मुंबई में 9 अगस्त 1942 को महात्मा गांधी ने भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत की, जब तक उन्हें गिरफ्तार नहीं किया गया।
बाबूजी का विद्यालयी जीवन
वर्ष 1920 में, बाबूजी ने आराह स्थित अग्रवाल विद्यालय में उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए प्रवेश लिया। उनकी आयु बढ़ते समय के साथ-साथ परिपक्वता के साथ भी बढ़ रही थी। उनकी जिज्ञासा के बल पर वे अंग्रेज़ी में निपुण हो गए, साथ ही वे बंकिम चन्द्र चटर्जी द्वारा रचित ‘आनन्द मठ’ की मूल पुस्तक (जो बांगाली में लिखी गई थी) को पढ़ने के लिए बांग्ला भाषा सीखने में भी सक्षम हुए। उन्हें अंग्रेज़ी के साथ-साथ हिंदी और संस्कृत में भी पाठ्य गति थी। 1925 में, पंडित मदन मोहन मालवीय जब आराह पहुंचे, तो उन्हें बाबूजी के व्यापक ज्ञान और उत्कृष्ट प्रदर्शन का आश्चर्य हुआ और उन्हें यह अहसास हुआ कि यह युवा व्यक्ति देश के स्वतंत्रता और राष्ट्र निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। उन्होंने बाबूजी से मिलकर उन्हें बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में आने का निमंत्रण दिया, लेकिन वहां जाति के आधार पर भेदभाव का सामना करना पड़ा। इसके खुले विरोध के बावजूद, बाबूजी ने सफलता प्राप्त की। उन्होंने आत्मिक विज्ञान परीक्षा में शानदार प्रदर्शन किया और वर्ष 1931 में कलकत्ता विश्वविद्यालय से विज्ञान स्नातक में उच्चतम अंकों से पास हुए।
राजनीतिक जीवन
बाबू जगजीवन राम का राजनीतिक जीवन का आरंभ कलकत्ता से ही हुआ। वह कलकत्ता में आने के छः महीने के भीतर ही एक बड़ी मजदूर रैली का आयोजन किया, जिसमें बड़ी संख्या में लोग शामिल हुए। इस रैली में नेताजी सुभाष चंद्र बोस जैसे महान स्वतंत्रता सेनानी ने भी बाबू जगजीवन राम के नेतृत्व की क्षमता का समर्थन किया। उस समय उन्होंने वीर चंद्रशेखर आज़ाद और सिद्धहस्त लेखक मन्मथनाथ गुप्त जैसे प्रमुख स्वतंत्रता समर्थकों के साथ काम किया। 1934 में, बिहार में भूकंप की तबाही से प्रभावित होते हुए, उन्होंने बिहार के लोगों की मदद और राहत कार्यों में सक्रिय भूमिका निभाई। बिहार में ही उन्होंने महात्मा गाँधी से अपनी पहली मुलाकात की, जो कि उस समय के महत्वपूर्ण स्वतंत्रता सेनानी थे। महात्मा गाँधी की सलाह पर, बाबू जगजीवन राम ने दलितों के अधिकारों की रक्षा के लिए समर्थन प्रदान किया और उन्हें अपने राजनीतिक जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने का संकल्प लिया। बाबूजी ने अपने विद्यार्थी जीवन में 1934 में कलकत्ता के विभिन्न जिलों में संत रविदास जयंती के उत्सव का आयोजन किया, और इसके साथ ही दो अन्य संगठनों की स्थापना भी की। 1935 में, उन्होंने डॉ॰ बीरबल की सुपुत्री इंद्रानी देवी से विवाह किया, जिसने उन्हें गहरा प्रभावित किया।
बाबूजी की राजनैतिक यात्रा
बाबूजी ने उस समय अत्यधिक परिश्रम किया था, जब उन्हें भारतीय राजनीति में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाने का मौका मिला। उनकी उम्र उस समय 28 वर्ष थी, और 1936 में बिहार में कांग्रेस को पराजित करने के लिए अंग्रेजों ने एकजुट होकर कठपुतली सरकार बनाने का प्रयास किया। इन चुनावों में बाबूजी और अन्य 14 भारतीय दलित वर्ग संघ के सदस्य निर्वाचित हुए। उनकी राजनैतिक शक्ति और लोकप्रियता के कारण, अंग्रेजों ने उनके समक्ष बड़ी रकम के बदले समर्थन की प्रस्तावना की, जिसे उन्होंने तत्काल ठुकरा दिया। इस घटना ने महात्मा गांधी का विश्वास उन पर और भी अधिक मजबूत किया, और उन्होंने उनकी प्रशंसा करते हुए कहा, ‘जगजीवन राम तपे कंचन की भांति खरे व सच्चे हैं। मेरा हृदय इनके प्रति आदरपूर्ण प्रशंसा से आपूरित है।’ इसके बाद, कांग्रेस ने सरकार का गठन किया, और बाबूजी को कृषि मंत्रालय, सहकारी उद्योग और ग्रामीण विकास मंत्रालय में संसदीय सचिव के रूप में नियुक्त किया गया। वर्ष 1938 में, अंदमान के कैदियों के मुद्दे पर और द्वितीय विश्व युद्ध में भारतीय सैनिकों के इस्तेमाल के खिलाफ महात्मा गांधी ने आंदोलन शुरू किया, जिसमें बाबूजी ने उत्तर पूर्वी भारत में तेजी से प्रचार का कार्य किया। हालांकि, कुछ दिनों के प्रचार के बाद ही, उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। उनके रिहाई के बाद, बाबूजी ने भारत की आज़ादी के लिए प्रयास किया, और वे उन बारह राष्ट्रीय नेताओं में एक थे, जिन्हें अंतरिम सरकार के गठन के लिए लार्ड वावेल ने आमंत्रित किया था। उनके जेनेवा में हुए श्रम सम्मेलन में हिस्सा लेने के बाद, उनका विमान बसरा के रेगिस्तान में दुर्घटनाग्रस्त हो गया, लेकिन उन्हें ज्यादा नुकसान नहीं हुआ।
देश की सेवा में समर्पित राजनेता
वर्ष 1946 में पंडित जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में गठित प्रथम लोकसभा में बाबूजी ने श्रम मंत्री के रूप में देश की सेवा की व अगले तीन दशकों तक कांग्रेस मंत्रिमंडल की शोभा बढ़ाई। इस महान राजनीतिज्ञ ने भारतीय राजनीति को अपने जीवन के 50 वसंत से भी अधिक दान में दिए हैं। संविधान के निर्माणकर्ताओं में से एक बाबूजी ने सदैव सामाजिक न्याय को सर्वोपरि माना है। पंडित नेहरू का बाबूजी के लिए एक विख्यात कथन कुछ इस प्रकार है – ‘समाजवादी विचारधारा वाले व्यक्ति को, देश की साधारण जनता का जीवन स्तर ऊँचा उठाने में बड़े से बड़ा खतरा उठाने में कभी कोई हिचक नहीं होती। श्री जगजीवन राम उन में से एक ऐसे महान व्यक्ति हैं’। श्रम, रेलवे, कृषि, संचार व रक्षा, जिस भी मंत्रालय का दायित्व बाबूजी को दिया गया हो उसका सदैव कल्याण ही हुआ है। बाबूजी ने हर मंत्रालय से देश को तरक्की पहुँचाने का अथक प्रयास किया है। स्वतंत्र देश घोषित होने के उपरान्त भारत के निर्माण की पूरी ज़िम्मेदारी नयी सरकार पर थी और इस ज़िम्मेदारी को पूरा करने में अत्यन्त महत्त्वपूर्ण योगदान बाबूजी का रहा।
श्रम संबंधी कानून: बाबूजी के महत्वपूर्ण योगदान
प्रथम सरकार में पूर्वी ग्रामीण शाहाबाद से निर्वाचित सांसद बाबू जगजीवन राम को श्रम मंत्रालय का दायित्व सौंपा गया। यह उनके लिए विशेष विषय था क्योंकि उनका जन्म खेत मजदूर के घर में हुआ था और उन्होंने स्वयं उस कठिनाईयों का सामना किया जो गरीबी के कारण उनके जीवन में आई थीं। उन्हें मिल-मजदूरों की समस्याओं की भी अच्छी जानकारी थी। श्रम मंत्री के रूप में उन्होंने कुछ महत्वपूर्ण कानूनों को लागू करने का निर्णय लिया, जो मजदूर वर्ग के लिए बड़ी उम्मीद और सबसे महत्वपूर्ण हथियार हैं। इनमें से कुछ कानून इंडस्ट्रियल डिस्प्यूट्स एक्ट, 1947, मिनिमम वेजेज़ एक्ट, 1948, इंडियन ट्रेड यूनियन (संशोधन) एक्ट, 1960, और पेयमेंट ऑफ़ बोनस एक्ट, 1965 शामिल हैं। इसके अलावा, एम्प्लाइज स्टेट इंश्योरेंस एक्ट, 1948, और प्रोविडेंट फण्ड एक्ट, 1952, भी बहुत महत्वपूर्ण हैं, जो व्यापारिक जीवन के लिए अत्यंत आवश्यक हैं।
बाबूजी की राजनीतिक यात्रा: संसद से मुख्यमंत्री तक
बाबूजी को संसद भवन को अपना दूसरा घर मानने का अत्यंत गर्व था। वर्ष 1952 में पंडित जवाहरलाल नेहरु ने सासाराम से निर्वाचित बाबू जगजीवन राम को संचार मंत्री का पद दिया। उन्हें संचार मंत्रालय के साथ ही विमानन विभाग का भी जिम्मा था। बाबूजी ने निजी विमान कम्पनियों के राष्ट्रीयकरण के प्रयासों को बढ़ावा दिया। इसके परिणामस्वरूप वायु सेना निगम, एयर इंडिया और इंडियन एयरलाइन्स की स्थापना हुई। इस राष्ट्रीयकरण योजना के प्रबल विरोध के बावजूद, बाबूजी ने उसे सफलतापूर्वक संपन्न किया। उन्होंने गाँवों में डाकखानों का नेटवर्क बढ़ाने के लिए कठिन प्रयास किए। इस मेहनती प्रयास को देखते हुए भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ॰ राजेंद्र प्रसाद ने उनकी प्रशंसा की, कहते हुए, “बाबू जगजीवन राम न केवल एक दृढ़ संकल्पी कार्यकर्ता हैं, बल्कि उनमें धर्मोपासकों का उत्साह और लगन भी है।”
1956 से 1962 तक रेल मंत्रालय की जिम्मेदारी उठाने के बाद, बाबूजी ने भारतीय रेलवे को आधुनिकीकरण की दिशा में कदम बढ़ाया। उन्होंने रेलवे किराया पांच सालों तक नहीं बढ़ाया, जो एक ऐतिहासिक घटना थी। उन्होंने रेलवे के कर्मचारियों के विकास पर ध्यान दिया और रेलमार्ग निर्माण में बड़ी प्रगति की।
1962 के आम चुनावों में बाबूजी को पुनः विजय मिली और उन्हें परिवहन और संचार मंत्रालय का पद सौंपा गया। परंतु वे कामराज योजना के तहत इस्तीफा दे दिया और कांग्रेस पार्टी को मजबूत करने में लगे। 1966-67 के आम चुनावों में विजयी बाबू जगजीवन राम को श्रम मंत्रालय का दायित्व मिला, और एक वर्ष बाद उन्हें कृषि और खाद्य मंत्रालय का जिम्मा सौंपा गया।
उन्होंने भारत को भुखमरी से बचाने के लिए हरित क्रांति की शुरुआत की, और कृषि और खाद्य मंत्रालय में रहते हुए बाढ़ से लड़ा और खाद्य संसाधनों में आत्मनिर्भरता बढ़ाई। 1970 के आम चुनावों में वे पुनः विजयी हुए और इंदिरा गांधी के कैबिनेट में पेट्रोलियम और चिकित्सा मंत्री के रूप में शामिल हुए। इसके पश्चात्, उन्हें उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री चुनाव में कांग्रेस द्वारा उम्मीदवार चुना गया, और वे उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री के रूप में कार्य करते हुए 1971 में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने।
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