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ToggleKrishna Janmashtami 2024 | कृष्ण जन्माष्टमी 2024
कृष्ण जन्माष्टमी की तारीख और मुहूर्त:
कृष्ण जन्माष्टमी 2024 को 26 अगस्त, सोमवार को मनाई जाएगी। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव पूरे देश में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। पूजा का शुभ मुहूर्त रात 11:57 बजे से शुरू होकर 12:42 बजे तक रहेगा। इस दौरान भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति का स्थापना और पूजा करना अत्यंत शुभ माना जाता है।
कृष्ण जन्माष्टमी 2024 से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी को निम्नलिखित तालिका में प्रस्तुत किया गया है:
विवरण | तिथि और समय |
---|---|
कृष्ण जन्माष्टमी की तिथि | 26 अगस्त, सोमवार |
श्रीकृष्ण जन्म का समय | रात 11:57 बजे से 12:42 बजे तक |
पूजा का शुभ मुहूर्त | रात 11:57 बजे से 12:42 बजे तक |
मूर्ति स्थापना का समय | रात 11:57 बजे से 12:42 बजे तक |
इस तालिका के अनुसार, 26 अगस्त 2024 को रात 11:57 बजे से 12:42 बजे तक का समय भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति स्थापना और पूजा के लिए सबसे शुभ माना गया है। पूरे देश में इस दिन को बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाएगा।
स्थापना और पूजा विधि:
कृष्ण जन्माष्टमी के दिन सुबह से ही भक्त उपवास रखते हैं और रात को भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करते हैं। भगवान की मूर्ति या तस्वीर को पीले वस्त्र पहनाकर उन्हें झूले में स्थापित किया जाता है। पूजा स्थल को फूलों और रोशनी से सजाया जाता है।
पूजा में पंचामृत, तुलसी दल, माखन मिश्री, फल, फूल, और दीप जलाकर भगवान श्रीकृष्ण की आराधना की जाती है। रात के 12 बजे भगवान का जन्म होता है, तब उन्हें झूले में झुलाया जाता है और जन्म की खुशी में शंख, घंटी, और मंजीरे बजाकर नाच-गाना होता है।
कृष्ण जन्माष्टमी की कहानी:
कृष्ण जन्माष्टमी की कथा भगवान श्रीकृष्ण के जन्म से जुड़ी है। कंस के अत्याचार से त्रस्त पृथ्वी ने भगवान विष्णु से सहायता मांगी। भगवान विष्णु ने वासुदेव और देवकी के आठवें पुत्र के रूप में श्रीकृष्ण के रूप में जन्म लिया। भगवान कृष्ण ने जन्म के बाद कंस का वध करके पृथ्वी को उसके अत्याचारों से मुक्त किया।
कृष्ण जन्माष्टमी का महत्व:
कृष्ण जन्माष्टमी का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व बहुत गहरा है। यह दिन बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। भगवान श्रीकृष्ण के जन्म के साथ ही मानवता को धर्म, सत्य और न्याय की शिक्षा मिली। इस दिन का उपवास और पूजा करने से जीवन में सुख, समृद्धि, और शांति की प्राप्ति होती है।
कृष्ण लीलाएं:
भगवान श्रीकृष्ण की लीलाएं भारतीय संस्कृति में बहुत महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं। उनकी बाल लीलाएं, गोवर्धन पर्वत उठाना, रासलीला, और कंस वध जैसी घटनाएं धर्म और भक्तिभाव का उदाहरण हैं। इन लीलाओं से हमें सत्य, प्रेम, और कर्तव्य पालन की प्रेरणा मिलती है।
अन्य महत्वपूर्ण बातें:
- ध्यान और मंत्र: जन्माष्टमी के दिन ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ मंत्र का जाप करना शुभ होता है।
- मोर पंख: भगवान श्रीकृष्ण के मुकुट में मोर पंख का विशेष महत्व है। इसे अपने घर में रखने से नकारात्मक ऊर्जा का नाश होता है।
- रात जागरण: इस दिन भक्त रात्रि जागरण करते हैं और भगवान की महिमा का गुणगान करते हैं।
कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व हमें जीवन में प्रेम, भक्ति, और धर्म का महत्व सिखाता है। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करने से मनोकामनाओं की पूर्ति होती है और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
भोग और प्रसाद:
कृष्ण जन्माष्टमी पर भगवान श्रीकृष्ण को विभिन्न प्रकार के भोग और प्रसाद अर्पित किए जाते हैं। सबसे प्रिय माखन मिश्री का भोग विशेष रूप से तैयार किया जाता है। इसके अलावा, फल, मिठाई, खीर, और पंजीरी जैसे प्रसाद भी अर्पित किए जाते हैं। घर के बड़े-बुजुर्ग कहते हैं कि अगर माखन मिश्री और पंजीरी का प्रसाद भगवान को सच्चे मन से चढ़ाया जाए, तो घर में सुख-समृद्धि का वास होता है।
झांकी और सजावट:
इस दिन घर और मंदिरों में भगवान श्रीकृष्ण की झांकी सजाई जाती है। इस झांकी में कृष्ण के बाल रूप, राधा-कृष्ण की रासलीला, गोपियों के साथ खेल, और अन्य महत्वपूर्ण लीलाओं को दर्शाया जाता है। इसे बहुत ही रंगीन और मनमोहक तरीके से सजाया जाता है, ताकि भगवान की महिमा का हर कोई अनुभव कर सके।
मटकी फोड़ कार्यक्रम:
कृष्ण जन्माष्टमी के दिन मटकी फोड़ का आयोजन भी होता है। यह कार्यक्रम खासकर मथुरा, वृंदावन, और महाराष्ट्र में बहुत धूमधाम से मनाया जाता है। इसमें बच्चे और युवा एक साथ मिलकर मटकी फोड़ने की कोशिश करते हैं, जो भगवान श्रीकृष्ण के माखन चोरी की लीला को दर्शाता है। इसे ‘दही हांडी’ के नाम से भी जाना जाता है।
नंदोत्सव:
कृष्ण जन्माष्टमी के अगले दिन ‘नंदोत्सव’ मनाया जाता है। इस दिन नंद बाबा ने भगवान श्रीकृष्ण के जन्म की खुशी में गांववासियों को दान दिया था। इसी परंपरा के चलते भक्तजन इस दिन जरूरतमंदों को दान-पुण्य करते हैं। ऐसा माना जाता है कि नंदोत्सव के दिन दान करने से भगवान की कृपा विशेष रूप से प्राप्त होती है।
कृष्ण मंत्र और जप:
कृष्ण जन्माष्टमी पर ‘कृष्ण मंत्र’ का जप करना अत्यंत लाभकारी माना जाता है। ‘ॐ श्रीकृष्णाय नमः’ मंत्र का 108 बार जाप करने से जीवन में सुख और शांति का अनुभव होता है। इसके साथ ही, ‘कृष्णाष्टक’ और ‘श्रीकृष्ण चालीसा’ का पाठ भी विशेष रूप से इस दिन किया जाता है।
समूह कीर्तन और भजन:
कृष्ण जन्माष्टमी पर भक्तजन रातभर जागरण करते हैं और समूह में कीर्तन और भजन गाते हैं। ये भजन भगवान श्रीकृष्ण की महिमा का बखान करते हैं। इनमें ‘मधुराष्टकम’, ‘गोविंद बोलो हरि गोपाल बोलो’, ‘राधा-कृष्ण की जोड़ी’, और ‘हरे राम हरे कृष्ण’ जैसे भजनों का विशेष स्थान होता है।
कृष्ण जन्माष्टमी पर ध्यान देने योग्य बातें:
- उपवास रखने के दौरान केवल फलाहार और पानी ग्रहण करें।
- पूजा के समय ध्यान केंद्रित करें और भगवान श्रीकृष्ण के बाल रूप का ध्यान करें।
- रात्रि जागरण के दौरान भगवान की महिमा का गुणगान करें और उनकी लीलाओं को सुनें।
- भगवान श्रीकृष्ण को नए वस्त्र, आभूषण, और मोर पंख से सजाएं।
- घर में साफ-सफाई रखें और शुद्ध वातावरण बनाएं।
कृष्ण जन्माष्टमी का सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व:
कृष्ण जन्माष्टमी न केवल धार्मिक बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से भी महत्वपूर्ण है। इस दिन को भारतीय समाज में एकजुटता, प्रेम, और भाईचारे का प्रतीक माना जाता है। लोग एक साथ मिलकर त्योहार मनाते हैं, जो समाज में सामूहिकता और सहयोग की भावना को मजबूत करता है।
कृष्ण की शिक्षाएं और उनके उपदेश:
भगवान श्रीकृष्ण ने भगवद गीता में जो उपदेश दिए हैं, वे आज भी जीवन के हर पहलू में प्रासंगिक हैं। उन्होंने धर्म, कर्म, और भक्ति की महिमा का बखान किया है। उनका कहना था कि मनुष्य को अपने कर्म करते रहना चाहिए और फल की चिंता नहीं करनी चाहिए। उनके उपदेश जीवन को सकारात्मक और सुखद बनाने में मदद करते हैं।
अंतिम विचार:
कृष्ण जन्माष्टमी का त्योहार हमें धर्म, भक्ति, और प्रेम का महत्व सिखाता है। यह दिन हमें याद दिलाता है कि बुराई पर अच्छाई की हमेशा जीत होती है और भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति से जीवन में शांति और समृद्धि का अनुभव किया जा सकता है। इस जन्माष्टमी पर भगवान श्रीकृष्ण की कृपा से आपका जीवन खुशियों से भरा रहे।
आपको और आपके परिवार को कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएं!
नीचे विभिन्न विषयों पर लेखों के लिंक और उनके मुख्य बिंदुओं की तालिका दी गई है। आप इन लिंक पर क्लिक करके अपनी रुचि के अनुसार लेख पढ़ सकते हैं:
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आरती कुंजबिहारी की:
आरती कुंजबिहारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की।
आरती कुंजबिहारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की।।
गले में बैजंती माला, बजावै मुरली मधुर बाला,
श्रवण में कुण्डल झलकाला, नंद के आनंद नंदलाला।
आरती कुंजबिहारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की।।
गगन सम अंग कांति काली, राधिका चमक रही आली,
लतन में ठाढ़े बनमाली, भ्रमर सी अलक, कस्तूरी तिलक।
आरती कुंजबिहारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की।।
चंद्र सी झलक, ललित छवि श्यामा प्यारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की,
आरती कुंजबिहारी की।।
कनकमय मोर मुकुट बिलसै, देवता दरसन को तरसैं।
गगन सों सुमन रासि बरसै, बजे मुरचंग, मधुर मिरदंग ग्वालिन संग।
अतुल रति गोप कुमारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की।
आरती कुंजबिहारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की।।
जहां ते प्रकट भई गंगा, सकल मन हारिणि श्री गंगा।
स्मरन ते होत मोह भंगा, बसी शिव सीस,
जटा के बीच, हरै अघ कीच, चरन छवि श्री बनवारी की।
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की,
आरती कुंजबिहारी की।।
चमकती उज्ज्वल तट रेनू, बज रही वृंदावन बेनू,
चहुं दिसि गोपि ग्वाल धेनू,
हंसत मृदु मंद, चांदनी चंद, कटत भव फंद।
टेर सुन दीन दुखारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की।
आरती कुंजबिहारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की।।
हर पंक्ति का अर्थ:
- आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की:
- यह पंक्ति भगवान श्रीकृष्ण की महिमा का गुणगान करती है। ‘कुंजबिहारी’ से तात्पर्य है वह जो वृंदावन के कुंजों में खेलते हैं, और ‘गिरिधर’ से उस रूप का संकेत मिलता है जिसने गोवर्धन पर्वत को उठाया था। आरती का यह भाव है कि हम श्रीकृष्ण की लीला का स्मरण करें और उनकी भक्ति में डूब जाएं।
- गले में बैजंती माला, बजावै मुरली मधुर बाला:
- इस पंक्ति में भगवान श्रीकृष्ण के गले में पड़ी बैजंती माला और उनके मुरली बजाने के रूप का वर्णन किया गया है। यह मुरली की मधुर ध्वनि पूरे ब्रह्मांड को मोहित कर देती है और सभी भक्तजन इसमें खो जाते हैं।
- श्रवण में कुण्डल झलकाला, नंद के आनंद नंदलाला:
- श्रीकृष्ण के कानों में झूलते कुण्डल की छवि का वर्णन है, जो उनकी सुंदरता को और भी बढ़ाते हैं। ‘नंद के आनंद नंदलाला’ से तात्पर्य है, वे नंद बाबा के आनंद के कारण हैं, क्योंकि वे उनके प्रिय पुत्र हैं।
- गगन सम अंग कांति काली, राधिका चमक रही आली:
- यहाँ श्रीकृष्ण की अंगकांति की तुलना आकाश से की गई है, और राधिका (राधा) की सुंदरता का वर्णन किया गया है जो उनके पास चमक रही हैं। यह बताता है कि कृष्ण और राधा एक-दूसरे के पूरक हैं।
- लतन में ठाढ़े बनमाली, भ्रमर सी अलक, कस्तूरी तिलक:
- श्रीकृष्ण को ‘बनमाली’ कहा गया है, जो वृक्षों और वनों के प्रिय हैं। उनके बालों को भ्रमर (भौंरे) की तरह काले और कस्तूरी तिलक उनके माथे पर चमकता है, जो उनकी दिव्यता का प्रतीक है।
- चंद्र सी झलक, ललित छवि श्यामा प्यारी की:
- इस पंक्ति में राधा की चंद्रमा जैसी चमकती छवि का वर्णन किया गया है। ‘श्यामा प्यारी’ राधा का दूसरा नाम है, और उनकी ललित (सुंदर) छवि की बात हो रही है।
- कनकमय मोर मुकुट बिलसै, देवता दरसन को तरसैं:
- श्रीकृष्ण के सिर पर सजी मोर मुकुट का वर्णन किया गया है, जो स्वर्ण (कनकमय) से बना है। इसे देखकर देवता भी उनके दर्शन के लिए तरसते हैं।
- गगन सों सुमन रासि बरसै, बजे मुरचंग, मधुर मिरदंग ग्वालिन संग:
- जब श्रीकृष्ण अपने ग्वाल साथियों के साथ होते हैं, तब आकाश से फूलों की वर्षा होती है और मधुर मिरदंग की ध्वनि सुनाई देती है। यह उनके दिव्य संग का संकेत है।
- अतुल रति गोप कुमारी की, श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की:
- गोपियों के बीच श्रीकृष्ण की अतुलनीय प्रेम और भक्ति का वर्णन है। गोपियों के लिए वे परमप्रिय और अद्वितीय हैं।
- जहां ते प्रकट भई गंगा, सकल मन हारिणि श्री गंगा:
- यहाँ गंगा नदी के प्रकट होने और उसके पवित्र जल से मन के सभी कष्टों के दूर होने का वर्णन किया गया है। गंगा का विशेष महत्व है क्योंकि वह शिवजी की जटाओं से निकलती है।
- स्मरन ते होत मोह भंगा, बसी शिव सीस, जटा के बीच, हरै अघ कीच, चरन छवि श्री बनवारी की:
- गंगा का स्मरण करने से मोह का नाश होता है। वह शिव की जटाओं में बसती हैं और उनके चरणों की छवि सभी पापों को मिटा देती है।
- चमकती उज्ज्वल तट रेनू, बज रही वृंदावन बेनू, चहुं दिसि गोपि ग्वाल धेनू:
- यहाँ वृंदावन की मधुर बांसुरी की ध्वनि का वर्णन किया गया है, जहां चारों ओर गोपियां, ग्वाल और गायें हैं। बांसुरी की धुन सुनकर सभी का मन प्रसन्न हो जाता है।
- हंसत मृदु मंद, चांदनी चंद, कटत भव फंद, टेर सुन दीन दुखारी की:
- भगवान श्रीकृष्ण की मुस्कान और उनकी करुणा का वर्णन किया गया है। उनकी टेर सुनकर सभी दुःख दूर हो जाते हैं और संसार के बंधनों से मुक्ति मिलती है।
इस आरती के माध्यम से भगवान श्रीकृष्ण की महिमा का बखान करते हुए हम उनकी दिव्यता और उनके अद्वितीय प्रेम का अनुभव करते हैं। उनके चरणों में भक्ति और श्रद्धा अर्पित कर हम उनके कृपापात्र बनने की प्रार्थना करते हैं।
ॐ जय जगदीश हरे आरती:
ॐ जय जगदीश हरे,
स्वामी जय जगदीश हरे।
भक्त जनों के संकट, दास जनों के संकट,
क्षण में दूर करे।
ॐ जय जगदीश हरे।।
जो ध्यावे फल पावे, दुःख बिनसे मन का,
स्वामी दुःख बिनसे मन का।
सुख सम्पति घर आवे, कष्ट मिटे तन का,
ॐ जय जगदीश हरे।।
मात पिता तुम मेरे, शरण गहूं किसकी,
स्वामी शरण गहूं किसकी।
तुम बिन और न दूजा, आस करूं जिसकी,
ॐ जय जगदीश हरे।।
तुम पूरण परमात्मा, तुम अंतर्यामी,
स्वामी तुम अंतर्यामी।
पार ब्रह्म परमेश्वर, तुम सबके स्वामी,
ॐ जय जगदीश हरे।।
तुम करुणा के सागर, तुम पालन करता,
स्वामी तुम पालन करता।
मैं मूरख खलकामी, मैं सेवक तुम स्वामी,
कृपा करो भर्ता।
ॐ जय जगदीश हरे।।
तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति,
स्वामी सबके प्राणपति।
किस विध मिलूं दयामय, तुमको मैं कुमति,
ॐ जय जगदीश हरे।।
दीनबंधु दुःखहर्ता, ठाकुर तुम मेरे,
स्वामी रक्षक तुम मेरे।
अपने हाथ उठाओ, अपनी शरण लगाओ,
द्वार पड़ा तेरे।
ॐ जय जगदीश हरे।।
विषय-विकार मिटाओ, पाप हरो देवा,
स्वामी पाप हरो देवा।
श्रद्धा भक्ति बढ़ाओ, संतजन की सेवा,
ॐ जय जगदीश हरे।।
ॐ जय जगदीश हरे,
स्वामी जय जगदीश हरे।
भक्त जनों के संकट, दास जनों के संकट,
क्षण में दूर करे।
ॐ जय जगदीश हरे।।
हर पंक्ति का अर्थ:
- ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी जय जगदीश हरे:
- यहाँ भगवान जगदीश (विष्णु) की जयकार की जा रही है। यह आरती एक समर्पण की भावना के साथ शुरू होती है, जहाँ भक्तगण भगवान को अपनी समस्याओं को हल करने के लिए पुकारते हैं।
- भक्त जनों के संकट, दास जनों के संकट, क्षण में दूर करे:
- भगवान से प्रार्थना की जा रही है कि वे अपने भक्तों और सेवकों के संकटों को तुरंत दूर करें। इस पंक्ति में भगवान की कृपा की अपील है, जो भक्तों की हर समस्या का समाधान कर सकती है।
- जो ध्यावे फल पावे, दुःख बिनसे मन का:
- जो भी सच्चे मन से भगवान का ध्यान करता है, उसे फल प्राप्त होता है, और उसके मन के सभी दुःख समाप्त हो जाते हैं। भगवान का ध्यान हमारे मानसिक कष्टों को दूर करता है।
- सुख सम्पति घर आवे, कष्ट मिटे तन का:
- भगवान की कृपा से सुख और सम्पत्ति हमारे घर में आते हैं, और शरीर के सभी कष्ट मिट जाते हैं। यह पंक्ति बताती है कि भगवान की भक्ति से जीवन में समृद्धि और स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है।
- मात पिता तुम मेरे, शरण गहूं किसकी:
- भगवान को माता-पिता के रूप में मानकर, भक्त कहता है कि अब वह उनकी शरण में है और उनके बिना कोई और नहीं है जिस पर वह विश्वास कर सके।
- तुम बिन और न दूजा, आस करूं जिसकी:
- भगवान के बिना कोई और नहीं है जिस पर भक्त अपनी आशा रख सके। इस पंक्ति में भगवान के प्रति पूर्ण समर्पण की भावना व्यक्त की गई है।
- तुम पूरण परमात्मा, तुम अंतर्यामी:
- भगवान को सर्वशक्तिमान और अंतर्यामी (सब कुछ जानने वाला) कहा गया है। वे ही सबके स्वामी हैं और उनकी शक्ति अनंत है।
- पार ब्रह्म परमेश्वर, तुम सबके स्वामी:
- भगवान को पारब्रह्म (सबसे उच्च) और परमेश्वर (ईश्वर) कहा गया है। वे ही सबके स्वामी हैं और इस संसार के रचयिता और संचालक हैं।
- तुम करुणा के सागर, तुम पालन करता:
- भगवान करुणा के सागर हैं और इस संसार के पालनहार हैं। वे अपने भक्तों पर कृपा करते हैं और उनकी रक्षा करते हैं।
- मैं मूरख खलकामी, मैं सेवक तुम स्वामी:
- भक्त खुद को मूर्ख और स्वार्थी मानकर कहता है कि वह भगवान का सेवक है, और भगवान उसके स्वामी हैं। वह भगवान से कृपा की याचना करता है।
- कृपा करो भर्ता:
- भक्त भगवान से प्रार्थना करता है कि वे उस पर कृपा करें और उसकी रक्षा करें।
- तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति:
- भगवान अदृश्य और सर्वशक्तिमान हैं, जो सबके प्राणों के स्वामी हैं। उनका स्वरूप अदृश्य है, और वे सभी को जीवन प्रदान करते हैं।
- किस विध मिलूं दयामय, तुमको मैं कुमति:
- भक्त भगवान से पूछता है कि वह किस तरह से उनसे मिल सकता है, जबकि वह खुद को दुर्बुद्धि मानता है। यह भगवान की दया की प्रार्थना है।
- दीनबंधु दुःखहर्ता, ठाकुर तुम मेरे:
- भगवान को दीनों का मित्र और दुःखों का हर्ता कहा गया है। वे ही भक्तों के रक्षक और स्वामी हैं।
- अपने हाथ उठाओ, अपनी शरण लगाओ, द्वार पड़ा तेरे:
- भक्त भगवान से प्रार्थना करता है कि वे अपने हाथ उठाकर उसे अपनी शरण में ले लें, क्योंकि वह उनके द्वार पर पड़ा हुआ है।
- विषय-विकार मिटाओ, पाप हरो देवा:
- भक्त भगवान से प्रार्थना करता है कि वे उसके सभी विकारों और पापों को मिटा दें और उसे शुद्ध करें।
- श्रद्धा भक्ति बढ़ाओ, संतजन की सेवा:
- भक्त भगवान से प्रार्थना करता है कि उसकी श्रद्धा और भक्ति को बढ़ाएं और उसे संतजन की सेवा करने का अवसर प्रदान करें।
इस आरती के माध्यम से भगवान विष्णु की महिमा का बखान करते हुए, हम उनकी कृपा और करुणा की प्रार्थना करते हैं। उनका स्मरण करते हुए हम उनसे जीवन की सभी समस्याओं का समाधान और शांति की याचना करते हैं।