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ToggleInspiring Stories of Chhatrapati Shivaji Maharaj | छत्रपति शिवाजी की कहानियाँ
छत्रपति शिवाजी महाराज भारतीय इतिहास के सबसे प्रेरक, साहसी और दूरदर्शी सम्राटों में से एक थे। उनका जीवन केवल युद्ध या शासन की गाथा नहीं, बल्कि मानवीयता, नीति, धर्म और राष्ट्रभक्ति की एक जीवित मिसाल है। नीचे प्रस्तुत है छत्रपति शिवाजी महाराज की कुछ प्रेरक कहानियाँ और उनसे मिलने वाली जीवन शिक्षाएँ।

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बचपन से ही पराक्रम की झलक
शिवाजी महाराज का जन्म 19 फरवरी 1630 को शिवनेरी किले में हुआ था। बचपन से ही उनमें अन्याय के प्रति विरोध और सत्य के लिए संघर्ष की भावना दिखती थी। उनकी माता, माता जीजाबाई, ने उन्हें रामायण और महाभारत जैसे ग्रंथों की कहानियाँ सुना-सुनाकर धर्म, देशभक्ति और न्याय की सीख दी ।
सुल्तान के दरबार में न झुकने की घटना
एक बार उनके पिता शाहजी ने शिवाजी महाराज को बीजापुर के सुल्तान के दरबार में ले गए। वहां सबने सुल्तान को प्रणाम किया, लेकिन शिवाजी ने सिर ऊँचा रखते हुए प्रणाम नहीं किया। दरबार में सब हैरान रह गए कि यह बालक इतना साहसी कैसे हो सकता है! उन्होंने कहा कि वे किसी विदेशी शासक के सामने सिर नहीं झुकाएँगे — केवल अपने माता-पिता और मातृभूमि के आगे ही सिर झुकेगा। यह उनका स्वाभिमान और आत्मसम्मान का प्रतीक था ।
बुढ़िया की सीख – धैर्य का महत्व
एक बार शिवाजी भूखे थे और जल्दी में खाने लगे। रोटियाँ बहुत गर्म थीं और उनके हाथ जल गए। पास बैठी एक वृद्धा ने मुस्कुराते हुए कहा — “बेटा, तू भी शिवाजी जैसा ही उतावला है। जैसे वह छोटे किले छोड़ बड़े किलों पर चढ़ाई करता है, वैसे ही तूने किनारे की ठंडी रोटियाँ छोड़ बीच की गर्म रोटी पकड़ ली।”
इस बात ने शिवाजी के हृदय को छू लिया। उन्होंने समझ लिया कि सफलता के लिए धैर्य आवश्यक है। इसी सीख ने उन्हें एक महान विजेता बनाया ।
मुगल बहू की रक्षा की घटना
शिवाजी महाराज के चरित्र में जितनी वीरता थी, उतनी ही मर्यादा और सम्मान की भावना भी थी। एक बार युद्ध के बाद उनकी सेना ने एक मुगल सरदार की बहू को बंदी बना लिया। शिवाजी ने तुरंत उस स्त्री को सम्मान से छुड़ाकर सुरक्षित उसके घर भेज दिया और अपने सेनापति को फटकार लगाई कि “युद्ध जीतना वीरता है, पर स्त्री का अपमान करना कायरता”। उन्होंने दिखाया कि असली वीरता दूसरों का सम्मान करने में है ।
बुढ़िया और आम का पेड़
एक और प्रसिद्ध प्रसंग है जब वे जंगल में शिकार के लिए गए थे। एक बुढ़िया आम तोड़ने के लिए पत्थर मार रही थी और गलती से पत्थर शिवाजी को लग गया। भोली बुढ़िया बोली — “महाराज, मुझे क्षमा करें, मैं तो केवल आम तोड़ रही थी।”
शिवाजी मुस्कुराए और बोले — “जो पेड़ मारने वाले को भी मीठे फल देता है, मैं उस पेड़ से क्या कम हूँ।” उन्होंने बुढ़िया को स्वर्ण मुद्राएँ दीं और कहा कि सहनशीलता और दया सबसे बड़ा बल है ।
हत्या के लिए भेजा गया लड़का
एक बार एक चौदह वर्षीय लड़का शिवाजी की हत्या करने के इरादे से उनके शयनकक्ष में घुस गया। जब पकड़ा गया तो उसने कहा कि वह गरीब है और दुश्मन ने माँ के भूखे पेट के बदले हत्या के लिए भेजा है। शिवाजी ने उसे ना केवल माफ किया, बल्कि धन देकर उसकी माँ की सहायता की। उन्होंने कहा — “जो भूख मिटाने को अपराध करे, उसका अपराध शासक का है”। यह उनकी करुणा और न्यायप्रियता का अपूर्व उदाहरण है ।
गुरु समर्थ रामदास से प्रेरणा
शिवाजी महाराज को उनके गुरु समर्थ रामदास स्वामी ने धर्म, नीति और लोककल्याण का मार्ग दिखाया। रामदास स्वामी ने उन्हें कहा था – “राजा का धर्म है प्रजा की रक्षा करना।” शिवाजी ने इसे अपने जीवन का ध्येय बनाया और ‘हिंदवी स्वराज्य’ की स्थापना की। उनके शासन की नीति धर्म, समानता और न्याय पर आधारित थी ।
महिलाओं का सम्मान और सुधार
शिवाजी ने न सिर्फ युद्ध लड़ा, बल्कि समाज में सुधार भी किए। उन्होंने सती प्रथा पर रोक लगाई, महिलाओं की शिक्षा और सम्मान को बढ़ावा दिया, और अपराधों के लिए कड़ी सजा सुनिश्चित की। किसी भी स्त्री को अपमानित करने वाले के लिए राज्य में कोई स्थान नहीं था ।
प्रशासनिक कुशलता और नेतृत्व
शिवाजी महाराज ने राइगढ़ किले को राजधानी बनाया, जहाँ उन्होंने शानदार प्रशासन स्थापित किया। उन्होंने कृषि सुधार, कर नीति और व्यापार संवर्धन के लिए कई कदम उठाए। उनकी सेना अनुशासित और देशभक्त थी — यही कारण था कि उनका मराठा साम्राज्य दूर-दूर तक फैला ।
अफजल खान का वध
बीजापुर के सेनापति अफजल खान ने शिवाजी को धोखे से मारने की योजना बनाई। परंतु शिवाजी अत्यंत बुद्धिमान और सतर्क थे। उन्होंने अपने कवच के नीचे ‘वाघनख’ (धातु की चपटी पंजानुमा हथियार) छिपाकर रखी। अफजल खान ने जैसे ही गले लगाया, शिवाजी ने वार कर दिया और धर्मरक्षक की तरह विजयी हुए। यह घटना उनके साहस और रणनीति की प्रतीक है ।
समुद्र जैसा धैर्य और दृष्टिकोण
सागर किनारे खड़े होकर शिवाजी महाराज अक्सर कहा करते थे – “समुद्र जैसा गुरु कोई नहीं। यह कभी नहीं रुकता, चाहे ज्वार हो या भाटा, यह अपने काम में निरंतर लगा रहता है।”
उन्होंने सागर से सीखा कि सेवा और प्रयास निरंतरता की मांग करते हैं — यही दृष्टिकोण उन्हें एक युगपुरुष बनाता है ।
जीवन से मिलने वाली शिक्षाएँ
- आत्मसम्मान को कभी नहीं त्यागना चाहिए।
- सफलता के लिए धैर्य और नीति आवश्यक है।
- स्त्रियों का आदर समाज की मर्यादा है।
- अन्याय के विरुद्ध खड़ा होना धर्म है।
- सहनशीलता और दया वीरों का स्वभाव है।
- शासन का उद्देश्य प्रजा की रक्षा और सुख-संपन्नता है।
छत्रपति शिवाजी महाराज के जीवन की ये प्रेरक कहानियाँ केवल इतिहास नहीं, बल्कि मानवता और देशभक्ति की जीती-जागती सीख हैं। ऐसी शख्सियतें जन्म लेकर युगों तक प्रेरणा देती रहती हैं। उनके आदर्श आज भी हर भारतीय के लिए प्रकाशपुंज हैं, जो यह सिखाते हैं कि साहस, नीति और करुणा से ही स्वराज्य स्थायी बनता है।
जय भवानी, जय शिवाजी!
छत्रपति शिवाजी महाराज पर अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
प्रश्न 1: छत्रपति शिवाजी महाराज का जन्म कब और कहाँ हुआ था?
उत्तर: शिवाजी महाराज का जन्म 19 फरवरी 1630 ईस्वी को पुणे के पास शिवनेरी किले में हुआ था।
प्रश्न 2: शिवाजी महाराज के माता-पिता कौन थे?
उत्तर: उनके पिता शाहजी भोंसले बीजापुर के सेनापति थे और माता जीजाबाई धार्मिक व राष्ट्रभक्त महिला थीं जिन्होंने शिवाजी के चरित्र निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
प्रश्न 3: शिवाजी महाराज को “छत्रपति” की उपाधि कब मिली थी?
उत्तर: शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक 6 जून 1674 को रायगढ़ किले पर हुआ था, जहाँ उन्हें “छत्रपति” की उपाधि प्रदान की गई।
प्रश्न 4: शिवाजी महाराज ने कितने किले जीते थे?
उत्तर: अपने शासनकाल में उन्होंने लगभग 360 किलों पर अधिकार स्थापित किया, जिनमें रायगढ़, तोरण, पुरंदर और सिंधुदुर्ग प्रमुख हैं।
प्रश्न 5: शिवाजी महाराज के गुरु कौन थे?
उत्तर: समर्थ रामदास स्वामी उनके आध्यात्मिक गुरु थे, जिन्होंने उन्हें धर्म, नीति और लोककल्याण का मार्ग दिखाया।
प्रश्न 6: शिवाजी महाराज की पहली पत्नी कौन थीं?
उत्तर: सईबाई निंबाळकर, जो अत्यंत धर्मनिष्ठ और विनम्र थीं, शिवाजी महाराज की पहली पत्नी थीं।
प्रश्न 7: शिवाजी महाराज की मृत्यु कब और कहाँ हुई थी?
उत्तर: शिवाजी महाराज का निधन 3 अप्रैल 1680 ईस्वी को रायगढ़ किले में हुआ था।
प्रश्न 8: शिवाजी महाराज को “भारतीय नौसेना का जनक” क्यों कहा जाता है?
उत्तर: उन्होंने समुद्री तट की सुरक्षा और विदेशी आक्रमण से बचाव के लिए एक सशक्त नौसेना का गठन किया। सिंधुदुर्ग और विजयरगढ़ जैसे किले उनके नौसैनिक दृष्टिकोण का प्रमाण हैं।
प्रश्न 9: शिवाजी महाराज का शासन किस सिद्धांत पर आधारित था?
उत्तर: उनका शासन “हिंदवी स्वराज्य” के सिद्धांत पर आधारित था, जिसका अर्थ है जनता के लिए, जनता द्वारा, और जनता का स्वराज्य।
प्रश्न 10: शिवाजी महाराज की प्रशासनिक व्यवस्था को क्या कहा जाता था?
उत्तर: उन्होंने “अष्टप्रधन परिषद” की स्थापना की थी, जिसमें आठ मंत्री राज्य के विभिन्न विभागों का संचालन करते थे।
प्रश्न 11: शिवाजी महाराज ने कौन-सी युद्ध नीति अपनाई थी?
उत्तर: उन्होंने “गनिमी कावा” यानी छापामार युद्ध नीति अपनाई, जिससे उन्होंने बड़ी-बड़ी सेनाओं पर विजय प्राप्त की।
प्रश्न 12: शिवाजी महाराज के उत्तराधिकारी कौन थे?
उत्तर: उनके ज्येष्ठ पुत्र संभाजी भोंसले उनके उत्तराधिकारी बने।
प्रश्न 13: शिवाजी महाराज ने धार्मिक सहिष्णुता के क्षेत्र में क्या कार्य किए?
उत्तर: उन्होंने सभी धर्मों का सम्मान किया, मस्जिदों और मंदिरों दोनों की रक्षा की और अपने शासन में किसी भी तरह का धार्मिक भेदभाव नहीं होने दिया।
प्रश्न 14: शिवाजी महाराज का प्रमुख उद्देश्य क्या था?
उत्तर: उनका उद्देश्य विदेशी और अन्यायकारी शासन से मुक्त होकर एक स्वतंत्र और न्यायपूर्ण हिंदवी स्वराज्य की स्थापना करना था।
प्रश्न 15: शिवाजी महाराज आज के युवाओं के लिए प्रेरणा क्यों हैं?
उत्तर: क्योंकि उन्होंने अपने बल और बुद्धि से साम्राज्य खड़ा किया, देशभक्ति, नीति, साहस और मर्यादा के आदर्श स्थापित किए जो हर पीढ़ी के लिए प्रेरक हैं।




