I Am a Taxpayer | मैं भी एक करदाता हूँ — पर मुझे क्या मिलता है?

I Am a Taxpayer | मैं एक करदाता हूँ

I Am a Taxpayer | मैं एक करदाता हूँ — पर मुझे क्या मिलता है?

सुबह सूरज की पहली किरण जब मेरी खिड़की पर दस्तक देती है, तो एक ख्याल हर दिन साथ आता है — मैं एक करदाता हूँ।
हर चाय की चुस्की से लेकर रात के खाने की आखिरी रोटी तक, हर टिकट, हर बिल, हर पेट्रोल के लीटर में — मेरा टैक्स शामिल है। मेहनत की कमाई का हिस्सा मैं देश को देता हूँ, मगर अक्सर मन पूछता है — बदले में मुझे मिलता क्या है?

टूटी सड़कें, टूटी उम्मीदें

जब घर से निकलता हूँ, तो रास्ते में सिर्फ गड्ढे मिलते हैं — जैसे मेरी उम्मीदों पर किसी ने चोट कर दी हो। इन सड़कों पर चलना खतरे से खाली नहीं; कोई न कोई हर दिन गिरता या घायल होता है। तब दिल कहता है — क्या मेरा टैक्स इन सड़कों तक नहीं पहुंचता?

अब तो हवा भी बीमार है

कभी हवा सबसे सस्ती चीज़ थी, अब वही सबसे भारी लगती है। सुबह की सैर में खांसी, बच्चों की सांस फूलना, आँखों में जलन — यही हकीकत है। हम टैक्स इसलिए देते हैं कि देश साफ-सुथरा बने, पर हवा में जहर घुलता जा रहा है। कभी-कभी लगता है, आने वाले कल में शायद सांसें भी टैक्स पर मिलेंगी।

अस्पतालों में उम्मीदों की लंबी कतार

जब कोई बीमार पड़ता है तो डर कम, लाचारी ज़्यादा महसूस होती है। सरकारी अस्पतालों की भीड़ और इंतजार खत्म नहीं होता, और निजी अस्पतालों के खर्च सुनकर जेब कांप जाती है। हर महीने टैक्स भरने वाला इंसान इलाज के वक्त फिर भी असहाय क्यों होता है? क्या टैक्स सिर्फ कागज़ी योजना रह गया है?

खाने में ज़हर, रोटी में डर

रोटी, दूध, मसाले — जो कभी भरोसे का प्रतीक थे, आज चिंता का कारण हैं। हर चीज़ में मिलावट, दाल में शंका, घी में गंध। जब बच्चे का दूध भी शुद्ध नहीं, तो किसी माँ को चैन कैसे मिलेगा? हम टैक्स इसलिए तो देते हैं कि स्वस्थ जीवन मिले, पर अब सेहत भी एक संघर्ष बन गई है।

वादे बहुत, हकीकत वही

हर चुनाव में नए वादे, नए नारे, नए चेहरे आते हैं। लेकिन गलियाँ, सड़कें, स्कूल, अस्पताल — सब वही पुराने हालात में हैं। हर साल बजट की घोषणाएँ होती हैं, पर ज़मीन पर असर नहीं दिखता। हर जवाब में वही बात — “कार्य प्रगति पर है।” पर यह प्रगति कब पूरी होगी?

आने वाली पीढ़ी के लिए क्या छोड़ रहे हैं हम?

कभी रात की खामोशी में सोचता हूँ — अपने बच्चों के लिए हम क्या विरासत छोड़ रहे हैं? साफ हवा शायद नहीं, सुरक्षित सड़कें शायद नहीं, ईमानदार व्यवस्था शायद नहीं। हम मेहनत करते हैं, टैक्स देते हैं, लेकिन क्या हम भविष्य को रोशनी दे पा रहे हैं या अंधकार ही बढ़ा रहे हैं?

एक दिल की बात

मैं एक आम इंसान हूँ — हर सुबह मेहनत करता हूँ और हर महीने टैक्स देता हूँ।
लेकिन अब मैं सिर्फ देने वाला नहीं रहूँगा, हक़ मांगने वाला नागरिक बनूँगा।
जब सड़कें चले लायक होंगी, हवा सांस लेने लायक होगी, और बच्चा मुस्कुराएगा — तब मैं गर्व से कहूँगा,
हाँ, मैं एक करदाता हूँऔर अब मुझे उसका फल मिला है

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